Sideways Market Meaning in Hindi
शेयर बाजार में साइडवेज़ मार्केट का मतलब
साइडवेज मार्केट क्या है?
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साइडवेज मार्केट क्या है? |
क्या आपने कभी सुना है कि शेयर बाज़ार न तो ऊपर जा रहा है और न ही नीचे? ऐसी स्थिति को ही 'साइडवेज मार्केट' या 'रेंज बाउंड मार्केट' कहा जाता है। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
शेयर बाजार में अक्सर हम दो तरह की स्थितियां देखते हैं - या तो बाजार ऊपर की ओर बढ़ रहा होता है (बुल मार्केट) या फिर नीचे की ओर गिर रहा होता है (बियर मार्केट)। लेकिन इन दोनों के अलावा एक और महत्वपूर्ण स्थिति होती है, जिसे साइडवेज मार्केट कहते हैं। इस दौरान, शेयर की कीमतें एक निश्चित दायरे (रेंज) में घूमती रहती हैं।
साइडवेज़ मार्केट क्या होता है?
जब किसी स्टॉक या इंडेक्स का प्राइस लंबे समय तक एक निश्चित रेंज के अंदर ही घूमता रहता है और उसमें कोई बड़ा अपट्रेंड या डाउनट्रेंड नहीं बनता, तो इसे साइडवेज़ मार्केट कहा जाता है। इस दौरान सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल के बीच ही प्राइस मूव करता रहता है।
साइडवेज मार्केट का मतलब:
जब किसी शेयर या पूरे बाजार की कीमत एक सीमित ऊपरी और निचली सीमा के बीच चलती है, तो उसे साइडवेज मार्केट कहते हैं। इस रेंज को 'सपोर्ट' और 'रेसिस्टेंस' लेवल के रूप में देखा जा सकता है।
रेसिस्टेंस (Resistance): यह वह ऊपरी स्तर होता है, जहाँ से कीमत बार-बार नीचे आती है।
सपोर्ट (Support): यह वह निचला स्तर होता है, जहाँ से कीमत बार-बार ऊपर जाती है।
यह ठीक वैसे ही है जैसे एक टेबल टेनिस की गेंद दो दीवारों के बीच उछलती रहती है। वह न तो दीवार तोड़कर बाहर जा पाती है और न ही बीच में रुकती है।
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sideways markit chart |
साइडवेज मार्केट कई कारणों से बन सकता है:
अनिर्णय की स्थिति (Indecision): जब ख़रीदार (Bulls) और विक्रेता (Bears) दोनों ही बाजार की दिशा को लेकर असमंजस में होते हैं, तो यह स्थिति बनती है। दोनों ही ताकतें लगभग बराबर होती हैं।
खबरों का अभाव (Lack of News): जब कोई बड़ी आर्थिक खबर या कंपनी से जुड़ी महत्वपूर्ण घोषणा नहीं होती, तो बाजार एक शांत दायरे में चला जाता है।
बड़े इवेंट से पहले की शांति: किसी बड़े इवेंट (जैसे बजट, चुनाव, या रिज़र्व बैंक की बैठक) से पहले निवेशक इंतज़ार करते हैं, जिससे बाजार की गति धीमी हो जाती है।
साइडवेज़ मार्केट की मुख्य पहचान
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प्राइस रेंज में फंसा रहना: स्टॉक का दाम एक ही दायरे में ऊपर-नीचे होता रहता है।
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ट्रेंड की कमी: यहां कोई स्पष्ट बुलिश (ऊपर) या बेयरिश (नीचे) ट्रेंड नहीं होता।
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लो वॉल्यूम ट्रेडिंग: कई बार इस समय पर ट्रेडिंग वॉल्यूम भी कम हो जाता है।
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टेक्निकल पैटर्न: इस दौरान अक्सर Rectangle Pattern, Flag Pattern जैसे पैटर्न दिखते हैं।
साइडवेज़ मार्केट क्यों बनता है?
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मार्केट में अनिश्चितता: जब निवेशकों को अर्थव्यवस्था या कंपनी के भविष्य को लेकर कंफ्यूजन होता है।
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लो ट्रेडिंग एक्टिविटी: बड़ी खबरों या डेटा रिलीज़ से पहले मार्केट शांत हो सकता है।
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सपोर्ट और रेजिस्टेंस का संतुलन: खरीदार और विक्रेता लगभग बराबर ताकत में रहते हैं।
साइडवेज़ मार्केट में ट्रेडिंग कैसे करें?
निवेशकों के लिए साइडवेज मार्केट में रणनीति
साइडवेज मार्केट में ट्रेडिंग करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन कुछ निवेशक इससे भी लाभ कमाते हैं:
सपोर्ट पर खरीदें और रेसिस्टेंस पर बेचें: कुछ ट्रेडर सपोर्ट लेवल के पास शेयर खरीदते हैं और रेसिस्टेंस लेवल के पास बेचते हैं। यह एक जोखिम भरी रणनीति हो सकती है।
ब्रेकआउट का इंतजार करें: अनुभवी निवेशक अक्सर तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक कीमत सपोर्ट या रेसिस्टेंस लेवल को तोड़कर एक नई दिशा में न चली जाए। इस स्थिति को 'ब्रेकआउट' कहते हैं और तब वे अपनी पोजीशन बनाते हैं।
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रेंज बाउंड ट्रेडिंग: सपोर्ट पर खरीदें और रेजिस्टेंस पर बेचें।
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ब्रेकआउट का इंतजार करें: जब प्राइस रेजिस्टेंस तोड़े, तब बड़ा मूव आ सकता है।
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स्टॉप-लॉस का इस्तेमाल करें: अचानक होने वाले ट्रेंड से बचने के लिए जरूरी है।
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कम टाइमफ्रेम देखें: इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए छोटे टाइमफ्रेम पर ट्रेड करना बेहतर रहता है।
निवेशकों के लिए साइडवेज़ मार्केट का मतलब
लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए यह समय धैर्य का होता है। क्योंकि अगर कोई अच्छा स्टॉक है, तो साइडवेज़ फेज के बाद उसमें अक्सर बड़ा मूव देखने को मिलता है।
निष्कर्ष
साइडवेज़ मार्केट में सही रणनीति अपनाना जरूरी है। बिना ट्रेंड के ट्रेड करना कठिन हो सकता है, लेकिन सही टेक्निकल एनालिसिस और रिस्क मैनेजमेंट से यहां भी मुनाफा कमाया जा सकता है।
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